Monday, September 5, 2011

A Poem Dedicated to Anna Hazare's Moovment

A Poem Dedicated to Anna Hazare's Moovment

Friday, June 10, 2011

ढेला बाई !!

छपरा शिव बाजार स्थित "ढेला जी के मंदिर" में कुछ दिन ले रोज घंटन बईठला के बाद आउर कुछ किताबन के पढला के बाद हमरा भीतरी ढेला बाई के एगो रूप गढ़ाईल, उहे रूप रुऊआ लोगिन के सोझा रखले बानी , उम्मीद बा की ई रुऊआ लोगिन के भोजपुरी प्रेम से भरल मन के जरुर सोहाई !!



"ढेला बाई" के जनम मुज्जफ्फरपुर के एगो कोठा पर भईल रहे, कहल जाला की उनकर महतारी मीणा बाई रहली, मीणा बाई लखनऊ से मुज्जफ्फरपुर एगो बरियाती में नाचे आइल रहली, आउर फिर इहवा से वापस ना जा सकली. एगो महतारी के जवन करेजा होखेला उहे मीणों बाई के रहे , आउर उनकर ममता ढेला बाई के ई नाच गान के पेशा से दुरे रखे के चाहत रहे| ऊ ढेला बाई के एगो निमन तालीम देवे के हींक भर कोशिश कईली बाकिर ओहमे उनकरा नकामिये हाथ लागल, आ एक दिन ऊ मजबूर होके ढेलो के गोड़ी में घुंघरू बाँध देहली| ढेला पर सरसती माई के अथाह किरपा रहे, आ बड़ा जल्दीए उ एगो संगीत के महान साधक बन गईली|
उनकरा के आपण कानी से सुनेवाला लोग कहत रहे की उनका घोंटी से राग के एगो अलगे गंगा जी बहत रहली , उनकर रहे के सलीका आ संगीत खातिर उनकर प्रेम गंगा माई जइसन पवितर आउर निर्मल रहे| ई सरसती माई के किरपा उनकरा पर अईसही ना भइल रहे एह किरपा के पावे बदे ऊ रोज ब्रह्मा मुहूर्त में जाग के तिन-चार घंटन ले ऊ रियाज करस| रुउये लोगिन बताई का ई एगो साधारण नाचे गावे वाली के सुभाव हो सकेला ? ओह घडी अइसन कवनो राग ना रहे जवन ढेला के घोंटी से ना बहत होखे,चाहे ऊ नागेस्वारी , मालकोश , अडाना, भिमोती , विरहम , भैरवी , खमाज , गारा , दुर्गा ..ई कुलही रागन पर ढेला के बराबरे पकड़ रहे|ई उनकर गायन रहे जे उनकरा के सारा जवार में मशहूर क देहलस. . उनकर रूपों कवनो तारीफ के मोहताज ना रहे, कुलही मिला के हमरा ई कहें में तनिको अहस नइखे बुझात की ढेला एगो महान गायिका और रूप के देवी जइसन रहली| ई ढेला के गायकी रहे जे ऊ घरी के छपरा के नामी आउर एगो रईस मोख्तार के आपण सामंती ताम-झाम ताखी पर रख के एगो नाचे वाली के कोठा पर आवे खातिर मजबूर क देहलस| हलिवंत सहाय ढेला के घोंटी से बहत जब निर्मल गीत सुनले त ऊ अपना के रोक ना सकले, उनकर मन हिलोर मारे लागल , आ काहे ना मारो उनकरा जिनगी में कवन अइसन तवायफ रहे जेकर गावल आउर नाचल उनकरा कानी आउर आँखी से ओलाता रहे | लेकिन ढेला जइसन रूप आउर नाच ऊ ना सुनले-देखले रहलन. ऊ ढेला से आपण मन के बात कह देलन की "ढेला तू हमरा संगे छपरा चल, हम तहरा के रानी बना के राखब , आज के बाद जब तू गईबू त हमरे खातिर" . एह पर ढेला के अहम् के धक्का लागल, आ दहकत आगि जइसन मन से ऊ कहली की हम एगो फुलसुंघी हई जे एगो बगली में आपण ठोड घूंसा के सारा रस चूस लेवे ली , आउर फिर दोसर बगली के तरफ बढ़ जाली , ढेला ई बात त दहकत आगि के जोर पर कह देली, बाकिर ई उनकर सुभाव ना रहे.

चोटाईल गेहुँअन सांप अइसन करेजा लेके हलिवंत सहाय के छपरा लउटे के परल , लेकिन उनकर सामंती घमंड से ढचकल मन भीतरे-भीतर एगो प्रण कर लेले रहे| इ घटना के थोरही दिन बितला के बाद एगो बरियाती में गावे खातिर ढेला के छपरा के धरती पे आवे के मऊका मिलल, हलिवंत सहाय के चोटाईल गेहुँअन मन फुंफकार मारे लागल , आ ओही फुंफकार के बिष के गर्मी में आके ऊ महेंदर मिसिर बाबा के निहोरा-पाती कके ढेला के भरल महफ़िल से उठवा लिहले|ढेला के त जबले कुछ बुझाइल रहित तबले ऊ अपना के एगो सोना के पिंजरा जइसन महल में कईद पईली|
उनकर माई मीणा बाई सगरो चिचियात रह गइली, बाकिर हलिवंत सहाय के मोख्तारी के सामने उनकर चिचिआईल भला के सुनीत| जेह लेखा बिना लड़कोरी के लईका रोअत-रोअत अपने-आप चुप होजाला आ ओकर आँखी के लोर सुख जला , ओही तरे मीणों बाई आपन लोर सुख गईला पर ई सोच के की चल ढेला के एगो मजबूत ठेहा मिल गईल ऊ मुज्ज्फ्फरपुर लौउट गईली |

ऊ सोना के पिजरा में ढेला के छोटहन दिन आउर लमहर रात गते-गते ससरे लागल, बाकिर हलिवंत सहाय नजिक आवे के जतन करते रह गइलन बाकिर ढेला के करेजा उनकरा से दुरे रहल| एक दिन ओही लमहर रात के एगो पहर में ढेला के कानी में पूर्वी के एगो वियोग से भरल गीत सुनाई परल , उनकर कान गरमाए लागल आ करेजा अईठआय लागल एगो अजिबे पीर उनकरा देहि में उठे लागल, जवन आजू ले ना हो सकल रहे ऊ आज होगईल रहे, ढेला के पहिलका बेरी ई बुझाइल की जवन पीर आ राग उनकरा गीतन में ना समां सकल रहे , ऊ एही गीत में बा| ऊ जाके देखली त चिहा गइली ई का !! ई त महेंदर बाबा हौउअन जे उनकरा के ऊठा के ई पिजरा में कईद करवईले रहलन, गाना ख़तम भईल आ ओलाता पा के, ढेला उनकरा सोझा खाड़ हो गईली , आ कहली रऊआ त हमरा के ऊठा के बड़ा बाऊर काम कईनी बाकिर अगर रऊआ ई बात के तनिको सा अफसोश होखे त आज से हमरा के आपण चेलिन बना ली | महेंदर बाबा हामी में गर्दन झुका देनी, ओकरा बाद ढेला जइसन संगीत के साधक के महेंदर बाबा जइसन एगो महान गुरु भेटा गइनी | बाबा छपरा में रह सकी एही खातिर बाबा के पूजा आऊर रहे बदे ऊ एगो मंदिल आ मंदिल के हाता में एगो निमन घर बनवा देहली |
" आजो ऊ मंदिल छपरा के शिव बाजार में बा, आ रऊआ जब ओहिजा कवनो बासिन्दा से पुछब त जवाब मिली, " हाँ इहे ढेला जी के मंदिर ह " आ इहे जवाब रऊआ के ढेला के चरित्र के बारे बहुत कुछ बता जाई"

अब रोजे ढेला के रियाज होखे लागल, आ ढेला के गीतन में नया-नया रागिनी भराए लागल, ऊ एह में अतना मगन होगईली की ऊ भुला गईली की ऊ एगो पिजरा में कईद बारी आ गते-गते ऊ कोठी में हलिवंत सहाय के मेहरारू लेखा रहे लगली | जब बाबा के घोटी से पूर्वी फूटे आ तबला के ताल पर ढेला के गोड़ थिड़के त बुझाय की पिछुती जवन सरयू जी बहत रहली ओह में चकोह उठ गईल होखे आ सभे ऊ चकोह में डुबे उतराय लागल होखे|
हम त ईहे कहेम की ढेला के गोरी के थिड्कन आऊर ओह में से फूटे वाला घुघरू के अवाज बाबा के कंठ से फूटे वाली पूर्वी के एगो नया आयाम देत रहे जवन आऊर केहू के बस के बात ना रहे| धीरे-धीरे ढेला बाबा के कंठ से फूटे वाली स्वर के लहर में लपेटात गईली आ एक दिन ऊ अपना के ऊ स्वर लता में जकड़ईल पईली, बाकिर ऊ जकड़न एगो साधक के आपन गुरु खातिर रहे, ओह जकड़न में देहि के कवनो जगह ना रहे|

एक रोज सुतली रात में महेंदर बाबा अपना शिवाला वाली कोठी में बईठ के अचानके पता ना काहे एगो बिरह के टिस भरल गीत गावे लगनी आ तबला बजावे लगनी, साधक के कान खरहा लेखा खाड़ होगईल, ढेला जब ध्यान देहली त ई बुझते देर ना लागल की ई बाबा के अवाज ह| बाबा के अवाज में एतना खिचाव रहे की ढेला आपन सेज से उठ गईली आ आपन घुंघरू लेके आपन कोठी के छत पर आ गईली| पूरा चनरमा के रात रहे , ऊ बाबा के देखे के जतन कईली बाकिर बाबा ना लऊकनी, खाली टिस भरल गीत आ संगे-संगे तबला के अवाज साफ़ सुनात रहे| ढेला के भीतर के कलाकार जाग गईल, आपन गोड़ी में घुंघरू बांध के लगली ऊ नाचे, आ ऊ नृत्य अइसन कईली जवन ऊ आज ले ना कईले रहली, ऊ अइसन भाव बनावस जईसे बुझाय की एगो चेलिन अपना गुरु के दछिना देत होखे, ढेला के सुन्दर रूप चनरमा के अंजोर में आउर दमके लागल, आ ओपर से आलोकिक नृत्य, साचो कहतनी की ऊ दृश्य अइसन रहे की ओह पर खुद इन्द्र भगवन के भी करेजा छ्छ्ना जाईत| बाकिर धेला के ऊ नृत्य आ बाबा के गीत खाली एगो गुरु-चेलिन खातिर रहे|

एही प्रीत मोहा के जब ढेला एक दिन आपन सबसे कीमती चीझ आ गूढ़ सामान "नथिया" भेट कईली त बाबा उ प्रेम के ना बुझ पईनी, आ ढेला के वियोग में छोड़ के हमेशा खातिर ओझिल हो गईनी| हलिवंत सहाय त पहिलही एह दुनिया से मन भर गईला पर एगो सुतली रात में ढेला के छोड़ के चल गईल रहलें|
ढेला एकदम अकेला होगईली आ उनकरा पर सब लोग भहरा के टूट पड़ल, लेकिन ढेला सब मुसिबतन के पार करत गईली, आ अपना के भगवान के पूजा-पाठ में ओझरा देहली I समय गते-गते ससरे लागल आ एक दिन अईसनो आईल जब ढेला के बुझाईल की अब जाय के समय आगईल बा , बाकिर उनकर प्राण बाबा के दरसन खातिर अटकल रहे|
ढेला के ईहो साध एक दिन पूज गईल, बाबा उनकरा सोझी बईठल रहनी.... ढेला के कानी में बाबा के गीत सुनात रहे.... मन ही मन गोड़ थिरके लागल, एही बिच आँखी से लोर टपकल आ एगो चिरई बड़ा जोर से फड़फड़अत पिजरा में से उड़ गईल |

- पवन कुमार श्रीवास्तव

Friday, June 3, 2011

क्या हम इन सब के लिए जिम्मेदार हैं ?

पिछली बार जब मैं अपने घर छपरा (बिहार के महत्वपूर्ण शहरो में से एक) गया था तो देखा एक लड़का (शायद सांतवी या आठवी में पढता होगा) अपने छत पे लालटेन जलाकर पढ़ रहा था, बिच-बिच में पीठ पे बैठे हुए मच्छर को मार भी रहा था, कभी-कभी अपने हाँथ से अपने माथे के पसीने को भी पोछ रहा था, हथेली के पसीने से कॉपी के पन्ने गिले हो रहे थे और लालटेन की रौशनी शायद उन महीन अछरो के लिए पर्याप्त नहीं थी !! मूझे मेरा बचपन याद आगया की कैसे आज से 18 -19 साल पहले मैं भी ऐसे ही पढता था, तभी मैंने मामा जी से पूछा की उनके बचपन में कैसी इस्तिथि थी, तो उन्होंने बताया 35 -40 साल पहले भी सबकुछ ऐसा ही था, केवल वो लड़का मैं नहीं हूँ बाकि सारी स्तिथि जस की तस हैं !! यानि पिछले ४० साल में हमारे यहाँ कुछ नहीं बदला, भारत बहुत तरक्की कर गया, यहाँ दुनिया चाँद पे पहुच गई, डेस्कटॉप आके चला गया लैपटॉप पुरानी बात होगई, आई-पैड का जमाना हैं .... फिर भी हमारे यहाँ कुछ क्यूँ नहीं बदला, क्या हम इन सब के लिए जिम्मेदार हैं ? किर्पया आप बताइए ...?

Sunday, May 1, 2011

"मेरी श्रधांजलि"

My maternal Grand father Late Baidhnath Prasad Shrivastav passed-away yesterday on 30-04-2011, he was a great freedom fighter.
His body was creameted with dew respect today in the presence of Labor Minister Shri Janardhan singh Sighrival and Guard of honor was given by Bihar Police ,today on 01-05-2011 on the ghat of Ganga in Chhapra.My homage to him.

"मेरी श्रधांजलि"

ह्रदय चोटिल और हाँथ बोझिल हैं
बैधनाथ तेरी श्रधांजलि पे मन व्याकुल हैं I

मां का लाडला था तू
खुद पिता का सहारा ना मिला,
पर मां का सहारा था तू I

जब देश था गुलामी के सिकंजे में
अंग्रेजो के छक्के छुराए चंपारण में
आजादी का अगुआ था तू
देश का सच्चा बहादुर सपूत था तू I

गांधी का प्रभाव था तुझमे
जेल जाने में भी तेरे कदम डगमगाए नहीं
छोर सबकुछ खादी को अपनाया तुने
बिहार का सच्चा सपूत था तू I

देश जब हुआ आजाद
मनाया था जस्न तिरंगे का तुने
जन्मभूमि का दीवाना था तू
सारण को तुझपे नाज था I

जन्मभूमि "चकदेह" को तुने "सर्वोदयपूरी" बनाया
बनियापुर के विकाश के लिए हुआ समर्पित
जनता का सच्चा सेवक था तू
सारण का बहादुर बेटा था तू I

सच्चाई से विस्वाश तेरा कभी डिगा नहीं
खादी पहन जब तू निकलता था
देश भक्ति की एहसाश दिलाता था
जीवन सारा तेरा संघर्ष में बिता I

"कलम" तेरा कभी थमा नहीं
चित्रांश परिवार का सच्चा बेटा था तू I

अमिट हैं तेरा संघर्ष और सच्चा था तेरा जीवन
प्रस्तिथियाँ तुझे क्या हराती
वक्त से लरना तेरी आदत जो थी
अदम्य साहस के साथ जिया तू
मौत तुझे क्या डराती I

तेरा हाँथ हमेशा हम्रारे साथ रहा
हिम्मत का श्र्रोत और असीम उर्जा का केंद्र था तू
बैधनाथ, सारण का सच्चा सपूत था तू I

चाहे हमसे तू दूर चला गया हैं आज
लेकिन तेरी परछाई अब भी हमारे साथ हैं
भूल ना पाएंगे तुमको
हमारे परिवार का सबसे कीमती "तारा" था तू I

आँखे हमेशा खोजेंगी पर अब देख ना पाएंगे तुम्हे
लेकिन जैसे सत्य हैं तुम्हारी मृत्युं और सत्य था तुम्हारा जीवन
वैसे ये भी सत्य हैं की तू रहेगा हमेशा
हमारी यादों में , हमारी आत्मा में I

"आपको हमारा प्रणाम"
- पवन कुमार श्रीवास्तव

Thursday, March 31, 2011

भोजपुरी के बलात्कारियो का क्या ..........?

भोजपुरी के बलात्कारियो का क्या ..........?
मुझे यकीं हैं की मेरी तरह और बहुत सारे तमाम लोग भी इस बात में सहमति रखते होंगे की भाषा और संस्कृति हमारी माँ तुल्य होती हैं, तो फिर आज भोजपुरी भाषा और संस्कृति के सपूत खामोश क्यूँ हैं ?
आज एक ऐसा प्रान्त जो देश को दिशा देता आया हैं वो अपनी ही संस्कृति और भाषा के प्रति इतना उदासीन क्यूँ हैं ...?
एक बात मेरे जेहन में आ रही हैं ..कही ऐसा तो नहीं की आप लोगो को ये लग ही नहीं रहा हो की बलात्कार जैसा कुछ हो भी रहा हैं ?
चलिए बात को घुमा फिरा कर कहने की बजाएं मैं सीधे मुद्दे पे आजाता हूँ , वैसे भी हम युवाओं को डिप्लोमेटिक होने की जरुरत नहीं हैं, आज हमारे संस्कृति एवं भाषा का बलात्कार बंद कमरे में नहीं बल्कि सिनेमा के बरे परदे पर सरे आम किया जा रहा हैं , वही सबके सामने हमारी संस्कृति एवं भाषा का नंगा तमाशा दिखाया जाता हैं, भोजपुरी के शब्दों का इस्तेमाल अश्लीलता एवं फूहड़पन को आवाज देने के लिए किया जा रहा हैं ! आप अगर इस बात से सहमत नहीं हैं तो पिछले २ दशकों में बनी हुई अधिकांश भोजपुरी फिल्मो को देख लीजिये आप सच से रूबरू होजाएंगे .... भिखारी ठाकुर जी ने सच ही कहा था "नाच काँच ह बाकिर बात सांच ह", ये जो आज मनोरंजन के नाम पे भाषा एवं संस्कृति के साथ खिलवाड़ हो रहा हैं क्या उसे मनोरंजन कहा जा सकता हैं ? और मान भी लिया जाये की इन फिल्मो से कुछ लोगो का मनोरंजन हो भी रहा हैं तो क्या हम मनोरंजन के नाम पे संस्कृति की आहुति दे देंगे.. मनोरंजन, संस्कृति एवं भाषा से बढ़कर तो नहीं है I आप भोजपुरी फिल्मो के गानों को सुनियें आप दांतों तले ऊँगली काट खायेंगे I स्त्री के अन्तरंग वस्त्रो की चर्चा ऐसे की जा रही हैं जैसे ये तो बहुत आम बात हैं ( चोलिया के हूंक लगा दी राजा जी , कसेत होता ) बांत यहाँ से बढ़कर अंगों तक भी निधडक चली जाती हैं ( मुर्गा मोबाइल , दो गो नेम्बुआ , चोली उठा के ...... ) इससे भी मन नहीं भरा तो फिर भावनाओ एवं सम्भोग की बाते भी हो जाती हैं ( धीरे-धीरे ड़ाल , हमरा हाउ चाही, मारे ला काचा-कच......) I मुझे समझ नहीं आता की आखिर वे इतने निडर क्यूँ हैं..उनको डर क्यूँ नहीं लगता ये सब करने में, या फिर वो जानते हैं की हम प्रतिक्रिया शुन्य लोग हैं हमपर कोई असर नहीं पड़ता, हमारी आत्मा मर गईं हैं I एक बात और मुझे परेशान कर रही हैं की, इन गानों एवं दृश्यों की नायिका कौन हैं ?..क्या हमारी माँ-बहन-बीबियाँ इस तरह की भावनाएं रखती हैं और खुलेआम व्यक्त करती हैं ?..अगर नहीं तो फिर सिनेमा में क्यूँ , क्या हम यही दिखाना चाहते हैं की देखो यही हैं हमारी संस्कृति यही हैं हमारी भाषा I अब मैं ये प्रश्न आप लोगो पे छोड़ता हूँ की ... इन बलात्कारियो के साथ क्या किया जाना चाहिए ?

- पवन कुमार श्रीवास्तव

Thursday, January 6, 2011

टीआरपी मनुस्मृति की तरह खतरनाक है और उसे जला देना चाहिए....

ये वो बाजार हैं जहाँ वही बिकता हैं जो पोपुलर हैं ... अगर पत्रकारिता एक बिकाऊ सामग्री हैं या विधा हैं तो फिर हम इसे लोकतंत्र का पांचवा प्रहरी कैसे कह सकते हैं .. क्यूंकि जो प्रहरी हैं वो बिकाऊ नहीं हो सकता और जो बिकाऊ हैं वो प्रहरी कदापि नहीं हो सकता हैं. I
जनाब आप लोग पत्रकारिता कर रहे हैं या फिर खबरों की बिकवाली , जिस चैनल की यहाँ बात हो रही हैं (आजतक) जिसे कथिक रूप से आपने बेचने का माध्यम बताया हैं ... भाईसाहब अब आम जनता तो ये बात समझ चुकी हैं लेकिन शायद आप पत्रकार लोग इस बात को अपने हलक के निचे नहीं ला रहे हैं वर्ना अपने आप को पत्रकार कहने का दंभ नहीं भरते ..


अब समय आगया हैं की आप अपनी जिम्मेदारी समझ ले या फिर अपना मुखौटा उतार दे .. पत्रकारिता का मुखौटा उतार दीजिये और अपने असली रूप से रु-बरु करवाइए I
मेरा सम्भोदन उन लोगो की तरफ हैं जो इस तंत्र के टूल या हथियार कहलाने में अपनी शाबाशी समझते हैं ... भाईसाहब ये इक्कीसवी सदी का बाजार हैं इस बाजार में एक तरफ वैस्यायें भी हैं और दूसरी तरफ प्रवचन देने वाले साधू भी हैं ... अपनी भूमिका पहचानिए इसी में सबकी भलाई हैं ...

एस्बेस्टस जानलेवा हैं .... !!

06-01-2011

आज जब मुझे " बिहार डेज " के माध्यम से ये जानकारी मिली की बिहार सरकार कुछ निजी कम्पनिओं को बिहार में एस्बेस्टस के उत्पादन हेतु अनुमति देने पे विचार कर रही हैं तो .... इसका विरोध करना लाजमी हैं !!
एस्बेस्टस का उत्पादन एवं किसी भी रूप में इसका प्रयोग काफी जानलेवा हैं इसके कारन पूरी दुनिया में ना जाने कितनी मौते ( फेफरे का केंसर ) हर साल होती हैं और इसी को देखते हुए इसके उत्पादन पे प्रतिबन्ध हैं ... भारत सरकार ने भी इसके उत्खनन पे रोक लगा राखी हैं और इसके पूर्ण प्रतिबन्ध से जुड़ा हुआ एक बिल हमारे राज्य सभा में लंबित हैं ... इस प्रस्तिथि में बिहार में इसके उत्पादन की अनुमति देना कतई जायज नहीं हैं !! बिहार में आज उधोग स्थापना की जरुरत हैं लेकिन हम किसी भी प्रस्तिथि में स्वास्थ्य से समझौता नहीं कर सकते हैं ... बिहार सरकार को बिना अविलम्ब किये हुए इन सभी योजनाओ को लाल झंडी दिखानी चाहिए .. मुझे तो आश्चर्य हो रहा उन कंपनियों पे जो इस तरह का जानलेवा योजन्याए लगाने की सोचती हैं , विकाश के लिए इस तरह की भूख बिलकुल जायज नहीं हैं .. आइये हम सब मिलकर इसका विरोध करे और अपनी आवाज सरकार तक पहुचाएं !!

Monday, January 3, 2011

हम भोजपुरिया हई ...

"हम भोजपुरिया हई" चाहे "मैं भोजपुरिया हूँ" ... इ दुनो बात सुने खातिर मन हमेशा बेचैन रहेला, अइसन बात नइखे की आज के नौजवान लोग भोजपुरी ना बोलेला लोग लेकिन एह तरह के लोगन के संख्या दिन पर दिन कम होत जाता I एक तरफ एगो अइसन तबका बा जे भोजपुरी के विकाश खातिर बिहार और बिहार के बाहर बहुत जोर शोर से हमेशा तत्पर लउके ला , लेकिन इहे समाज में एगो अइसन तबका बा जे इ भाषा के अश्लील बनाके आपण घर भरता लोग , आ इगो बहुत बरका कारन होगइल बा जेकरा चलते भोजपुरी भाषा के पहचान धूमिल होता , आज हमनी के अपना घर में नातअ भोजपुरी गाना सुन सकेली सन नाही कौनो फिल्म देख सकेनी सन .. काहे की आज काल के सिनेमा इतना भद्दा और अश्लील होगइल बा की अपना आप पे शर्म आवेला ! एकर अनुमति अब हमनी के ना देम सन की कोई हमनी के भाषा के गन्दा कर के बाजार में बेचदे .. कौनो न कौनो उपाए अब सोचाही के पड़ी नात बड़ा देर होजाई ..

pic source:www.ecards-passion.net

Sunday, January 2, 2011

बिनायक सेन को राष्‍ट्रविरोधी करार देने वाली न्यायपालिका और हम आम लोग ......

New Delhi


02-01-2011.

जब मैंने इक्कीसवी सताब्दी के संचार माध्यम द्वारा ये समाचार पढ़ा की बिनायक सेन को "राष्‍ट्रविरोधी" करार देते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई है तो मुझे यूँ लगा जैसे वो उसी तरह से हो जैसे की "भगत सिंह" या फिर "लाला लाजपत राय" को अंग्रेजो ने उनके स्वाधीनता संग्राम या जागृत करने वाले कार्य में सामिल होने के कारन कारावास की सजा सुना दी हो ! लेकिन क्या हम आज भी गुलामी में जी रहे हैं और पहले हम अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम थे और अब पूंजीवादी लोकतंत्र के गुलाम ! अगर हम गुलाम नहीं भी हैं तो ये प्रजातंत्र हमे किसी भी मुद्दे पर विरोध या अपनी आवाज उठाने का अवसर नहीं देने वाली तंत्र हैं ! एक ओर जहा " ए. राजा " एवं " ...कलमाड़ी " जैसे लोगो को समाज के अन्दर रहने दिया जाता हैं वही दूसरी ओर वही तंत्र बिनायक सेन जैसे समाजवादी लोगो को समाज से बहार रहने की उद्घोषणा करता हैं ... जी में भी यहाँ अरुंधती जी के कथन से सहमत हूँ की ये फैसला नहीं था ये न्यायपालिका की घोषणा थी जो इस न्यायतंत्र और इसकी कार्य प्रणाली का असली चेहरा हैं ! अगर अभी भी हम नहीं जागे तो सायद आने वाले समय में सामाजिक सरोकार से जुरे हुए हर आमलोग ( पत्रकार , सामाजिक कार्यकर्ता , लेखक ....) राष्‍ट्रविरोधी करार दिए जायेंगे !

पवन के श्रीवास्तव...