Thursday, January 6, 2011

टीआरपी मनुस्मृति की तरह खतरनाक है और उसे जला देना चाहिए....

ये वो बाजार हैं जहाँ वही बिकता हैं जो पोपुलर हैं ... अगर पत्रकारिता एक बिकाऊ सामग्री हैं या विधा हैं तो फिर हम इसे लोकतंत्र का पांचवा प्रहरी कैसे कह सकते हैं .. क्यूंकि जो प्रहरी हैं वो बिकाऊ नहीं हो सकता और जो बिकाऊ हैं वो प्रहरी कदापि नहीं हो सकता हैं. I
जनाब आप लोग पत्रकारिता कर रहे हैं या फिर खबरों की बिकवाली , जिस चैनल की यहाँ बात हो रही हैं (आजतक) जिसे कथिक रूप से आपने बेचने का माध्यम बताया हैं ... भाईसाहब अब आम जनता तो ये बात समझ चुकी हैं लेकिन शायद आप पत्रकार लोग इस बात को अपने हलक के निचे नहीं ला रहे हैं वर्ना अपने आप को पत्रकार कहने का दंभ नहीं भरते ..


अब समय आगया हैं की आप अपनी जिम्मेदारी समझ ले या फिर अपना मुखौटा उतार दे .. पत्रकारिता का मुखौटा उतार दीजिये और अपने असली रूप से रु-बरु करवाइए I
मेरा सम्भोदन उन लोगो की तरफ हैं जो इस तंत्र के टूल या हथियार कहलाने में अपनी शाबाशी समझते हैं ... भाईसाहब ये इक्कीसवी सदी का बाजार हैं इस बाजार में एक तरफ वैस्यायें भी हैं और दूसरी तरफ प्रवचन देने वाले साधू भी हैं ... अपनी भूमिका पहचानिए इसी में सबकी भलाई हैं ...

एस्बेस्टस जानलेवा हैं .... !!

06-01-2011

आज जब मुझे " बिहार डेज " के माध्यम से ये जानकारी मिली की बिहार सरकार कुछ निजी कम्पनिओं को बिहार में एस्बेस्टस के उत्पादन हेतु अनुमति देने पे विचार कर रही हैं तो .... इसका विरोध करना लाजमी हैं !!
एस्बेस्टस का उत्पादन एवं किसी भी रूप में इसका प्रयोग काफी जानलेवा हैं इसके कारन पूरी दुनिया में ना जाने कितनी मौते ( फेफरे का केंसर ) हर साल होती हैं और इसी को देखते हुए इसके उत्पादन पे प्रतिबन्ध हैं ... भारत सरकार ने भी इसके उत्खनन पे रोक लगा राखी हैं और इसके पूर्ण प्रतिबन्ध से जुड़ा हुआ एक बिल हमारे राज्य सभा में लंबित हैं ... इस प्रस्तिथि में बिहार में इसके उत्पादन की अनुमति देना कतई जायज नहीं हैं !! बिहार में आज उधोग स्थापना की जरुरत हैं लेकिन हम किसी भी प्रस्तिथि में स्वास्थ्य से समझौता नहीं कर सकते हैं ... बिहार सरकार को बिना अविलम्ब किये हुए इन सभी योजनाओ को लाल झंडी दिखानी चाहिए .. मुझे तो आश्चर्य हो रहा उन कंपनियों पे जो इस तरह का जानलेवा योजन्याए लगाने की सोचती हैं , विकाश के लिए इस तरह की भूख बिलकुल जायज नहीं हैं .. आइये हम सब मिलकर इसका विरोध करे और अपनी आवाज सरकार तक पहुचाएं !!

Monday, January 3, 2011

हम भोजपुरिया हई ...

"हम भोजपुरिया हई" चाहे "मैं भोजपुरिया हूँ" ... इ दुनो बात सुने खातिर मन हमेशा बेचैन रहेला, अइसन बात नइखे की आज के नौजवान लोग भोजपुरी ना बोलेला लोग लेकिन एह तरह के लोगन के संख्या दिन पर दिन कम होत जाता I एक तरफ एगो अइसन तबका बा जे भोजपुरी के विकाश खातिर बिहार और बिहार के बाहर बहुत जोर शोर से हमेशा तत्पर लउके ला , लेकिन इहे समाज में एगो अइसन तबका बा जे इ भाषा के अश्लील बनाके आपण घर भरता लोग , आ इगो बहुत बरका कारन होगइल बा जेकरा चलते भोजपुरी भाषा के पहचान धूमिल होता , आज हमनी के अपना घर में नातअ भोजपुरी गाना सुन सकेली सन नाही कौनो फिल्म देख सकेनी सन .. काहे की आज काल के सिनेमा इतना भद्दा और अश्लील होगइल बा की अपना आप पे शर्म आवेला ! एकर अनुमति अब हमनी के ना देम सन की कोई हमनी के भाषा के गन्दा कर के बाजार में बेचदे .. कौनो न कौनो उपाए अब सोचाही के पड़ी नात बड़ा देर होजाई ..

pic source:www.ecards-passion.net

Sunday, January 2, 2011

बिनायक सेन को राष्‍ट्रविरोधी करार देने वाली न्यायपालिका और हम आम लोग ......

New Delhi


02-01-2011.

जब मैंने इक्कीसवी सताब्दी के संचार माध्यम द्वारा ये समाचार पढ़ा की बिनायक सेन को "राष्‍ट्रविरोधी" करार देते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई है तो मुझे यूँ लगा जैसे वो उसी तरह से हो जैसे की "भगत सिंह" या फिर "लाला लाजपत राय" को अंग्रेजो ने उनके स्वाधीनता संग्राम या जागृत करने वाले कार्य में सामिल होने के कारन कारावास की सजा सुना दी हो ! लेकिन क्या हम आज भी गुलामी में जी रहे हैं और पहले हम अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम थे और अब पूंजीवादी लोकतंत्र के गुलाम ! अगर हम गुलाम नहीं भी हैं तो ये प्रजातंत्र हमे किसी भी मुद्दे पर विरोध या अपनी आवाज उठाने का अवसर नहीं देने वाली तंत्र हैं ! एक ओर जहा " ए. राजा " एवं " ...कलमाड़ी " जैसे लोगो को समाज के अन्दर रहने दिया जाता हैं वही दूसरी ओर वही तंत्र बिनायक सेन जैसे समाजवादी लोगो को समाज से बहार रहने की उद्घोषणा करता हैं ... जी में भी यहाँ अरुंधती जी के कथन से सहमत हूँ की ये फैसला नहीं था ये न्यायपालिका की घोषणा थी जो इस न्यायतंत्र और इसकी कार्य प्रणाली का असली चेहरा हैं ! अगर अभी भी हम नहीं जागे तो सायद आने वाले समय में सामाजिक सरोकार से जुरे हुए हर आमलोग ( पत्रकार , सामाजिक कार्यकर्ता , लेखक ....) राष्‍ट्रविरोधी करार दिए जायेंगे !

पवन के श्रीवास्तव...