Thursday, March 31, 2011

भोजपुरी के बलात्कारियो का क्या ..........?

भोजपुरी के बलात्कारियो का क्या ..........?
मुझे यकीं हैं की मेरी तरह और बहुत सारे तमाम लोग भी इस बात में सहमति रखते होंगे की भाषा और संस्कृति हमारी माँ तुल्य होती हैं, तो फिर आज भोजपुरी भाषा और संस्कृति के सपूत खामोश क्यूँ हैं ?
आज एक ऐसा प्रान्त जो देश को दिशा देता आया हैं वो अपनी ही संस्कृति और भाषा के प्रति इतना उदासीन क्यूँ हैं ...?
एक बात मेरे जेहन में आ रही हैं ..कही ऐसा तो नहीं की आप लोगो को ये लग ही नहीं रहा हो की बलात्कार जैसा कुछ हो भी रहा हैं ?
चलिए बात को घुमा फिरा कर कहने की बजाएं मैं सीधे मुद्दे पे आजाता हूँ , वैसे भी हम युवाओं को डिप्लोमेटिक होने की जरुरत नहीं हैं, आज हमारे संस्कृति एवं भाषा का बलात्कार बंद कमरे में नहीं बल्कि सिनेमा के बरे परदे पर सरे आम किया जा रहा हैं , वही सबके सामने हमारी संस्कृति एवं भाषा का नंगा तमाशा दिखाया जाता हैं, भोजपुरी के शब्दों का इस्तेमाल अश्लीलता एवं फूहड़पन को आवाज देने के लिए किया जा रहा हैं ! आप अगर इस बात से सहमत नहीं हैं तो पिछले २ दशकों में बनी हुई अधिकांश भोजपुरी फिल्मो को देख लीजिये आप सच से रूबरू होजाएंगे .... भिखारी ठाकुर जी ने सच ही कहा था "नाच काँच ह बाकिर बात सांच ह", ये जो आज मनोरंजन के नाम पे भाषा एवं संस्कृति के साथ खिलवाड़ हो रहा हैं क्या उसे मनोरंजन कहा जा सकता हैं ? और मान भी लिया जाये की इन फिल्मो से कुछ लोगो का मनोरंजन हो भी रहा हैं तो क्या हम मनोरंजन के नाम पे संस्कृति की आहुति दे देंगे.. मनोरंजन, संस्कृति एवं भाषा से बढ़कर तो नहीं है I आप भोजपुरी फिल्मो के गानों को सुनियें आप दांतों तले ऊँगली काट खायेंगे I स्त्री के अन्तरंग वस्त्रो की चर्चा ऐसे की जा रही हैं जैसे ये तो बहुत आम बात हैं ( चोलिया के हूंक लगा दी राजा जी , कसेत होता ) बांत यहाँ से बढ़कर अंगों तक भी निधडक चली जाती हैं ( मुर्गा मोबाइल , दो गो नेम्बुआ , चोली उठा के ...... ) इससे भी मन नहीं भरा तो फिर भावनाओ एवं सम्भोग की बाते भी हो जाती हैं ( धीरे-धीरे ड़ाल , हमरा हाउ चाही, मारे ला काचा-कच......) I मुझे समझ नहीं आता की आखिर वे इतने निडर क्यूँ हैं..उनको डर क्यूँ नहीं लगता ये सब करने में, या फिर वो जानते हैं की हम प्रतिक्रिया शुन्य लोग हैं हमपर कोई असर नहीं पड़ता, हमारी आत्मा मर गईं हैं I एक बात और मुझे परेशान कर रही हैं की, इन गानों एवं दृश्यों की नायिका कौन हैं ?..क्या हमारी माँ-बहन-बीबियाँ इस तरह की भावनाएं रखती हैं और खुलेआम व्यक्त करती हैं ?..अगर नहीं तो फिर सिनेमा में क्यूँ , क्या हम यही दिखाना चाहते हैं की देखो यही हैं हमारी संस्कृति यही हैं हमारी भाषा I अब मैं ये प्रश्न आप लोगो पे छोड़ता हूँ की ... इन बलात्कारियो के साथ क्या किया जाना चाहिए ?

- पवन कुमार श्रीवास्तव