New Delhi
02-01-2011.
जब मैंने इक्कीसवी सताब्दी के संचार माध्यम द्वारा ये समाचार पढ़ा की बिनायक सेन को "राष्ट्रविरोधी" करार देते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई है तो मुझे यूँ लगा जैसे वो उसी तरह से हो जैसे की "भगत सिंह" या फिर "लाला लाजपत राय" को अंग्रेजो ने उनके स्वाधीनता संग्राम या जागृत करने वाले कार्य में सामिल होने के कारन कारावास की सजा सुना दी हो ! लेकिन क्या हम आज भी गुलामी में जी रहे हैं और पहले हम अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम थे और अब पूंजीवादी लोकतंत्र के गुलाम ! अगर हम गुलाम नहीं भी हैं तो ये प्रजातंत्र हमे किसी भी मुद्दे पर विरोध या अपनी आवाज उठाने का अवसर नहीं देने वाली तंत्र हैं ! एक ओर जहा " ए. राजा " एवं " ...कलमाड़ी " जैसे लोगो को समाज के अन्दर रहने दिया जाता हैं वही दूसरी ओर वही तंत्र बिनायक सेन जैसे समाजवादी लोगो को समाज से बहार रहने की उद्घोषणा करता हैं ... जी में भी यहाँ अरुंधती जी के कथन से सहमत हूँ की ये फैसला नहीं था ये न्यायपालिका की घोषणा थी जो इस न्यायतंत्र और इसकी कार्य प्रणाली का असली चेहरा हैं ! अगर अभी भी हम नहीं जागे तो सायद आने वाले समय में सामाजिक सरोकार से जुरे हुए हर आमलोग ( पत्रकार , सामाजिक कार्यकर्ता , लेखक ....) राष्ट्रविरोधी करार दिए जायेंगे !
पवन के श्रीवास्तव...
1 comment:
यह सत्ता के दलालों की साजिश है उन तमाम लोगों के खिलाफ जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.ये नहीं चाहते की कोई इनके खिलाफ आवाज उठाये.ये केवल विनायक सेन की बात नहीं है.यह उन तमाम लोगो के लिए चेतावनी है,जो सरकार और व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाते हैं,की हम अपने खिलाफ उठने वाले आवाज को किसी भी तिकडम से दबा सकते हैं.अगर हम अब भी नहीं चेते तो आने वाले समय में इस प्रजातंत्र को सत्ता के दलाल अपने ठेंगे पर लेकर चलने लगेंगे.
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