छपरा शिव बाजार स्थित "ढेला जी के मंदिर" में कुछ दिन ले रोज घंटन बईठला के बाद आउर कुछ किताबन के पढला के बाद हमरा भीतरी ढेला बाई के एगो रूप गढ़ाईल, उहे रूप रुऊआ लोगिन के सोझा रखले बानी , उम्मीद बा की ई रुऊआ लोगिन के भोजपुरी प्रेम से भरल मन के जरुर सोहाई !!
"ढेला बाई" के जनम मुज्जफ्फरपुर के एगो कोठा पर भईल रहे, कहल जाला की उनकर महतारी मीणा बाई रहली, मीणा बाई लखनऊ से मुज्जफ्फरपुर एगो बरियाती में नाचे आइल रहली, आउर फिर इहवा से वापस ना जा सकली. एगो महतारी के जवन करेजा होखेला उहे मीणों बाई के रहे , आउर उनकर ममता ढेला बाई के ई नाच गान के पेशा से दुरे रखे के चाहत रहे| ऊ ढेला बाई के एगो निमन तालीम देवे के हींक भर कोशिश कईली बाकिर ओहमे उनकरा नकामिये हाथ लागल, आ एक दिन ऊ मजबूर होके ढेलो के गोड़ी में घुंघरू बाँध देहली| ढेला पर सरसती माई के अथाह किरपा रहे, आ बड़ा जल्दीए उ एगो संगीत के महान साधक बन गईली|
उनकरा के आपण कानी से सुनेवाला लोग कहत रहे की उनका घोंटी से राग के एगो अलगे गंगा जी बहत रहली , उनकर रहे के सलीका आ संगीत खातिर उनकर प्रेम गंगा माई जइसन पवितर आउर निर्मल रहे| ई सरसती माई के किरपा उनकरा पर अईसही ना भइल रहे एह किरपा के पावे बदे ऊ रोज ब्रह्मा मुहूर्त में जाग के तिन-चार घंटन ले ऊ रियाज करस| रुउये लोगिन बताई का ई एगो साधारण नाचे गावे वाली के सुभाव हो सकेला ? ओह घडी अइसन कवनो राग ना रहे जवन ढेला के घोंटी से ना बहत होखे,चाहे ऊ नागेस्वारी , मालकोश , अडाना, भिमोती , विरहम , भैरवी , खमाज , गारा , दुर्गा ..ई कुलही रागन पर ढेला के बराबरे पकड़ रहे|ई उनकर गायन रहे जे उनकरा के सारा जवार में मशहूर क देहलस. . उनकर रूपों कवनो तारीफ के मोहताज ना रहे, कुलही मिला के हमरा ई कहें में तनिको अहस नइखे बुझात की ढेला एगो महान गायिका और रूप के देवी जइसन रहली| ई ढेला के गायकी रहे जे ऊ घरी के छपरा के नामी आउर एगो रईस मोख्तार के आपण सामंती ताम-झाम ताखी पर रख के एगो नाचे वाली के कोठा पर आवे खातिर मजबूर क देहलस| हलिवंत सहाय ढेला के घोंटी से बहत जब निर्मल गीत सुनले त ऊ अपना के रोक ना सकले, उनकर मन हिलोर मारे लागल , आ काहे ना मारो उनकरा जिनगी में कवन अइसन तवायफ रहे जेकर गावल आउर नाचल उनकरा कानी आउर आँखी से ओलाता रहे | लेकिन ढेला जइसन रूप आउर नाच ऊ ना सुनले-देखले रहलन. ऊ ढेला से आपण मन के बात कह देलन की "ढेला तू हमरा संगे छपरा चल, हम तहरा के रानी बना के राखब , आज के बाद जब तू गईबू त हमरे खातिर" . एह पर ढेला के अहम् के धक्का लागल, आ दहकत आगि जइसन मन से ऊ कहली की हम एगो फुलसुंघी हई जे एगो बगली में आपण ठोड घूंसा के सारा रस चूस लेवे ली , आउर फिर दोसर बगली के तरफ बढ़ जाली , ढेला ई बात त दहकत आगि के जोर पर कह देली, बाकिर ई उनकर सुभाव ना रहे.
चोटाईल गेहुँअन सांप अइसन करेजा लेके हलिवंत सहाय के छपरा लउटे के परल , लेकिन उनकर सामंती घमंड से ढचकल मन भीतरे-भीतर एगो प्रण कर लेले रहे| इ घटना के थोरही दिन बितला के बाद एगो बरियाती में गावे खातिर ढेला के छपरा के धरती पे आवे के मऊका मिलल, हलिवंत सहाय के चोटाईल गेहुँअन मन फुंफकार मारे लागल , आ ओही फुंफकार के बिष के गर्मी में आके ऊ महेंदर मिसिर बाबा के निहोरा-पाती कके ढेला के भरल महफ़िल से उठवा लिहले|ढेला के त जबले कुछ बुझाइल रहित तबले ऊ अपना के एगो सोना के पिंजरा जइसन महल में कईद पईली|
उनकर माई मीणा बाई सगरो चिचियात रह गइली, बाकिर हलिवंत सहाय के मोख्तारी के सामने उनकर चिचिआईल भला के सुनीत| जेह लेखा बिना लड़कोरी के लईका रोअत-रोअत अपने-आप चुप होजाला आ ओकर आँखी के लोर सुख जला , ओही तरे मीणों बाई आपन लोर सुख गईला पर ई सोच के की चल ढेला के एगो मजबूत ठेहा मिल गईल ऊ मुज्ज्फ्फरपुर लौउट गईली |
ऊ सोना के पिजरा में ढेला के छोटहन दिन आउर लमहर रात गते-गते ससरे लागल, बाकिर हलिवंत सहाय नजिक आवे के जतन करते रह गइलन बाकिर ढेला के करेजा उनकरा से दुरे रहल| एक दिन ओही लमहर रात के एगो पहर में ढेला के कानी में पूर्वी के एगो वियोग से भरल गीत सुनाई परल , उनकर कान गरमाए लागल आ करेजा अईठआय लागल एगो अजिबे पीर उनकरा देहि में उठे लागल, जवन आजू ले ना हो सकल रहे ऊ आज होगईल रहे, ढेला के पहिलका बेरी ई बुझाइल की जवन पीर आ राग उनकरा गीतन में ना समां सकल रहे , ऊ एही गीत में बा| ऊ जाके देखली त चिहा गइली ई का !! ई त महेंदर बाबा हौउअन जे उनकरा के ऊठा के ई पिजरा में कईद करवईले रहलन, गाना ख़तम भईल आ ओलाता पा के, ढेला उनकरा सोझा खाड़ हो गईली , आ कहली रऊआ त हमरा के ऊठा के बड़ा बाऊर काम कईनी बाकिर अगर रऊआ ई बात के तनिको सा अफसोश होखे त आज से हमरा के आपण चेलिन बना ली | महेंदर बाबा हामी में गर्दन झुका देनी, ओकरा बाद ढेला जइसन संगीत के साधक के महेंदर बाबा जइसन एगो महान गुरु भेटा गइनी | बाबा छपरा में रह सकी एही खातिर बाबा के पूजा आऊर रहे बदे ऊ एगो मंदिल आ मंदिल के हाता में एगो निमन घर बनवा देहली |
" आजो ऊ मंदिल छपरा के शिव बाजार में बा, आ रऊआ जब ओहिजा कवनो बासिन्दा से पुछब त जवाब मिली, " हाँ इहे ढेला जी के मंदिर ह " आ इहे जवाब रऊआ के ढेला के चरित्र के बारे बहुत कुछ बता जाई"
अब रोजे ढेला के रियाज होखे लागल, आ ढेला के गीतन में नया-नया रागिनी भराए लागल, ऊ एह में अतना मगन होगईली की ऊ भुला गईली की ऊ एगो पिजरा में कईद बारी आ गते-गते ऊ कोठी में हलिवंत सहाय के मेहरारू लेखा रहे लगली | जब बाबा के घोटी से पूर्वी फूटे आ तबला के ताल पर ढेला के गोड़ थिड़के त बुझाय की पिछुती जवन सरयू जी बहत रहली ओह में चकोह उठ गईल होखे आ सभे ऊ चकोह में डुबे उतराय लागल होखे|
हम त ईहे कहेम की ढेला के गोरी के थिड्कन आऊर ओह में से फूटे वाला घुघरू के अवाज बाबा के कंठ से फूटे वाली पूर्वी के एगो नया आयाम देत रहे जवन आऊर केहू के बस के बात ना रहे| धीरे-धीरे ढेला बाबा के कंठ से फूटे वाली स्वर के लहर में लपेटात गईली आ एक दिन ऊ अपना के ऊ स्वर लता में जकड़ईल पईली, बाकिर ऊ जकड़न एगो साधक के आपन गुरु खातिर रहे, ओह जकड़न में देहि के कवनो जगह ना रहे|
एक रोज सुतली रात में महेंदर बाबा अपना शिवाला वाली कोठी में बईठ के अचानके पता ना काहे एगो बिरह के टिस भरल गीत गावे लगनी आ तबला बजावे लगनी, साधक के कान खरहा लेखा खाड़ होगईल, ढेला जब ध्यान देहली त ई बुझते देर ना लागल की ई बाबा के अवाज ह| बाबा के अवाज में एतना खिचाव रहे की ढेला आपन सेज से उठ गईली आ आपन घुंघरू लेके आपन कोठी के छत पर आ गईली| पूरा चनरमा के रात रहे , ऊ बाबा के देखे के जतन कईली बाकिर बाबा ना लऊकनी, खाली टिस भरल गीत आ संगे-संगे तबला के अवाज साफ़ सुनात रहे| ढेला के भीतर के कलाकार जाग गईल, आपन गोड़ी में घुंघरू बांध के लगली ऊ नाचे, आ ऊ नृत्य अइसन कईली जवन ऊ आज ले ना कईले रहली, ऊ अइसन भाव बनावस जईसे बुझाय की एगो चेलिन अपना गुरु के दछिना देत होखे, ढेला के सुन्दर रूप चनरमा के अंजोर में आउर दमके लागल, आ ओपर से आलोकिक नृत्य, साचो कहतनी की ऊ दृश्य अइसन रहे की ओह पर खुद इन्द्र भगवन के भी करेजा छ्छ्ना जाईत| बाकिर धेला के ऊ नृत्य आ बाबा के गीत खाली एगो गुरु-चेलिन खातिर रहे|
एही प्रीत मोहा के जब ढेला एक दिन आपन सबसे कीमती चीझ आ गूढ़ सामान "नथिया" भेट कईली त बाबा उ प्रेम के ना बुझ पईनी, आ ढेला के वियोग में छोड़ के हमेशा खातिर ओझिल हो गईनी| हलिवंत सहाय त पहिलही एह दुनिया से मन भर गईला पर एगो सुतली रात में ढेला के छोड़ के चल गईल रहलें|
ढेला एकदम अकेला होगईली आ उनकरा पर सब लोग भहरा के टूट पड़ल, लेकिन ढेला सब मुसिबतन के पार करत गईली, आ अपना के भगवान के पूजा-पाठ में ओझरा देहली I समय गते-गते ससरे लागल आ एक दिन अईसनो आईल जब ढेला के बुझाईल की अब जाय के समय आगईल बा , बाकिर उनकर प्राण बाबा के दरसन खातिर अटकल रहे|
ढेला के ईहो साध एक दिन पूज गईल, बाबा उनकरा सोझी बईठल रहनी.... ढेला के कानी में बाबा के गीत सुनात रहे.... मन ही मन गोड़ थिरके लागल, एही बिच आँखी से लोर टपकल आ एगो चिरई बड़ा जोर से फड़फड़अत पिजरा में से उड़ गईल |
- पवन कुमार श्रीवास्तव