Thursday, January 6, 2011

टीआरपी मनुस्मृति की तरह खतरनाक है और उसे जला देना चाहिए....

ये वो बाजार हैं जहाँ वही बिकता हैं जो पोपुलर हैं ... अगर पत्रकारिता एक बिकाऊ सामग्री हैं या विधा हैं तो फिर हम इसे लोकतंत्र का पांचवा प्रहरी कैसे कह सकते हैं .. क्यूंकि जो प्रहरी हैं वो बिकाऊ नहीं हो सकता और जो बिकाऊ हैं वो प्रहरी कदापि नहीं हो सकता हैं. I
जनाब आप लोग पत्रकारिता कर रहे हैं या फिर खबरों की बिकवाली , जिस चैनल की यहाँ बात हो रही हैं (आजतक) जिसे कथिक रूप से आपने बेचने का माध्यम बताया हैं ... भाईसाहब अब आम जनता तो ये बात समझ चुकी हैं लेकिन शायद आप पत्रकार लोग इस बात को अपने हलक के निचे नहीं ला रहे हैं वर्ना अपने आप को पत्रकार कहने का दंभ नहीं भरते ..


अब समय आगया हैं की आप अपनी जिम्मेदारी समझ ले या फिर अपना मुखौटा उतार दे .. पत्रकारिता का मुखौटा उतार दीजिये और अपने असली रूप से रु-बरु करवाइए I
मेरा सम्भोदन उन लोगो की तरफ हैं जो इस तंत्र के टूल या हथियार कहलाने में अपनी शाबाशी समझते हैं ... भाईसाहब ये इक्कीसवी सदी का बाजार हैं इस बाजार में एक तरफ वैस्यायें भी हैं और दूसरी तरफ प्रवचन देने वाले साधू भी हैं ... अपनी भूमिका पहचानिए इसी में सबकी भलाई हैं ...

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